ध्वनि-विचार (वर्ण और ध्वनि)


वर्ण
बनावट की दृष्टि से वर्ण भाषा की लघुतम इकाई है वर्ण को 'ध्वनि-चिह्न' भी कहते हैं वर्ण' उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके खंड या टुकड़े नहीं हो सकते

जैसे-, क्, ख्, प्, इत्यादि

 

वर्णों के उच्चारण-समूह को 'वर्णमाला' कहते हैं हिन्दी वर्णमाला में कुल 46 वर्ण हैं। इन वर्गों को दो भागों में बाँटा गया है

(1) स्वर और

(2) व्यंजन। .

 

स्वर वर्ण-'स्वर' उन वर्णों को कहते हैं, जिनका उच्चारण स्वतः होता है। हिन्दी में स्वर वर्णों की संख्या ग्यारह है, जो इस प्रकार हैं

ह्रस्व स्वर              :        , , ,

दीर्घ स्वर               :        , ,

संयुक्त स्वर         :        , , ,

 

उच्चारण में लगनेवाले समय के आधार पर स्वरों का यह वर्गीकरण किया गया है। जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है, उन्हें 'हस्व' तथा जिनके उच्चारण में अधिक समय लगता है, उन्हें 'दीर्घ' कहते हैं। संयुक्त स्वर दीर्घ स्वर की श्रेणी में ही आते हैं।

 

व्यंजन-वर्ण-व्यंजन-वर्ण वे हैं, जिनका उच्चारण स्वर वर्णों की सहायता से होता है। प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में '' की ध्वनि छिपी रहती है जैसे- - क् + , - ख् + हिन्दी में व्यंजन-वर्णों की संख्या 33 है। इनकी तीन श्रेणियाँ हैं-

(1) स्पर्श,

(2) अन्तःस्थ और

(3) ऊष्म।

 

स्पर्श व्यंजन- कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग तथा पवर्ग स्पर्श व्यंजन हैं। इनका उच्चारण क्रमशः कण्ठ, तालु, मूर्द्धा, दन्त, ओष्ठ स्थानों के स्पर्श से होता है

अन्तःस्थ, , और अन्तःस्थ व्यंजन हैं ये स्वर और व्यंजन के बीच स्थित है।

ऊष्म, , और चार ऊष्म व्यंजन हैं, जिनका उच्चारण एक प्रकार की रगड़ से उत्पन्न ऊष्म वायु से होता है।

 

व्यंजन में दो वर्ण और हैं, जिन्हें अनुस्वार (-) और विसर्ग (:) कहते हैं। इन्हें अयोगवाह के नाम से भी जाना जाता है इनके अतिरिक्त हिन्दी वर्णमाला में तीन व्यंजन क्ष, त्र, भी सम्मिलित हैं ये संयुक्त व्यंजन हैं। क् + - क्ष, त् + = त्र, ज् + - ज्ञ ! और के नीचे बिन्दु लगाकर दो नये अक्षर ड़ और ढ़ बनाये गये हैं। इन्हें तलबिन्दु वर्ण या उत्क्षिप्त कहते हैं।

 

बाह्य प्रयत्न के अनुसार सम्पूर्ण व्यंजनों को अल्पप्राण और महाप्राण वर्ग में भी बाँटा गया है जिन वर्णों का उच्चारण करते समय मुँह से निकलनेवाले श्वास की मात्रा अल्प रहती है, उन्हें 'अल्पप्राण' कहा जाता है प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवाँ वर्ण और अन्त:स्थ वर्ण अल्पप्राण होता है 'महाप्राण' वर्गों के उच्चारण में श्वास अधिक परिमाण में निकलता है। प्रत्येक वर्ण का दूसरा, चौथा और सभी ऊष्म वर्ण महाप्राण हैं।


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स्वर-तंत्री के आधार पर वर्णों को 'घोष' और 'अघोष' वर्गों में विभक्त किया गया। जिन वर्णों के उच्चारण में स्वर-तंत्रियाँ आपस में झंकृति उत्पन्न करती हैं, वे 'घोष' कहला हैं। ये हैं सभी स्वर, प्रत्येक वर्ग के तीसरे, चौथे और पाँचवें वर्ण तथा , , , वी ह। जिन वर्णों के उच्चारण में झंकृति नहीं रहती, वे अघोष कहलाते हैं। , , च। , , , , , , , और अघोष वर्ण हैं।

 

प्रयत्न की दृष्टि से हिन्दी में व्यंजन वर्णों को आठ भागों में बाँटा गया है, जिन्हें निम्नलिनि तालिका द्वारा समझा जा सकता है

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उच्चारण-स्थान के विचार से वर्णों के भेद को निम्नलिखित तालिका से अच्छी तरह समझा जा सकता है

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बलाघात या स्वराघात- बोलते समय किसी अक्षर या शब्द पर जो बल दिया जा उसे 'बलाघात' या 'स्वराघात' कहा जाता है बलाघात का प्रभाव बोलने और समझा। पड़ता है। शब्दों के उच्चारण और वाक्यों को बोलते समय बलाघात का रखना चाहिए।

अनुतान- उच्चरित ध्वनि की स्वर-लहरियों में उतार-चढ़ाव को 'अनुतान' कहत इस स्वर-लहर के कारण 'शब्द' तथा 'वाक्य' के अर्थ बदल जाते हैं। जैस

सामान्य कथन     अच्छा

प्रश्नवाचक             अच्छा?

आश्चर्यसूचक       अच्छा !  

'संगम' शब्दों और वाक्यों के उच्चारण-क्रम में अल्पकालीन मौन या विराम की अवस्था को 'संगम' कहते हैं 'संगम' होने या होने से शब्द या वाक्य के अर्थ में अंतर पड़ता है

जैसे “दवाखाना (दवा खाना) दवा पीली है (दवा पी ली है।)

 

उच्चारण तथा वर्तनी- उच्चारण तथा वर्तनी का भाषा में विशेष महत्त्व है अत: ध्वनियों को लिखते या बोलते समय अधिक सावधान रहना चाहिए। कुछ ध्वनियों में तो नाम मात्र का ही भेद होता है फलस्वरूप एक की जगह दूसरे के प्रयोग की भूल हो जाती है ऐसी दशा में भिन्न अर्थ वाले शब्द का प्रयोग हो जाता है, जो गलत होता है ऐसी गलतियाँ स्वर और व्यंजन दोनों ध्वनियों में हो जाती हैं। जैसेनियत-नीयत, बहु-बहू, बाढ़-बाड़, बहन-वहन, वास-बास, शेर-सेर इत्यादि

 

शब्द-लेखन उच्चारण का अनुसरण करता है। प्रत्येक भाषा में व्यंजन तथा स्वर वर्णों के सार्थक संयोग से शब्द बनाये जाते हैं इनकी वर्तनी में स्थायित्व रहता है, जबकि उच्चारण देश, काल आदि के कारण वदलता रहता है स्थानीय बोली के असर से भी हिन्दी ध्वनियों का उच्चारण बिगड़ या बदल जाता है, जिसके कारण लिखते समय वर्तनी की भूलें हो जाती हैं वर्तनी-सम्बन्धी भूलें लिपि का शुद्ध ज्ञान होने पर भी हो जाया करती हैं सामान्यतः संयुक्ताक्षर, चन्द्रबिन्दु, अनुस्वार तथा पंचमाक्षर के प्रयोग में भी काफी भूलें होती हैं

 

वर्तनी-सम्बन्धी नियम निम्नलिखित अनुसार हैं, जिन्हें भारत सरकार तथा हिन्दी के विद्वानों की भी मान्यता प्राप्त है

1. सर्वनाम शब्दों के अतिरिक्त अन्य शब्दों से कारक-विभक्तियों को अलग लिखना चाहिए सर्वनाम के साथ कारक-विभक्ति को मिलाकर लिखना चाहिए जैसे-कृष्ण ने, कंस को, देश के लिए, परदेश से, हाथ से, जमीन पर, इत्यादि

तुमने, हमने, उसको, उनका, उनके लिए, इत्यादि

यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि जब सर्वनाम के साथ दो विभक्तियाँ एक साथ लगानी हों, तब पहली विभक्ति सर्वनाम के साथ और दूसरी अलग लिखी जाती है जैसेउनके लिए, तुम्हारे पास, आदि

 

2. संयुक्त क्रियाओं में सभी सहायक क्रियाओं को अलग-अलग लिखा जाय जैसे-- मैं जाकर सो जाऊँगा, वे पढ़ाकर रहे हैं।

 

3. 'साथ', 'तक' आदि अव्यय को शब्दों से अलग लिखना चाहिए जैसेआपके साथ, आने तक।

 

4. पूर्वकालिक प्रत्यय 'कर' क्रिया से मिलाकर लिखना चाहिए जैसे-जाकर, आकर, सुनकर, उठकर

 

5. द्वन्द्व समास में पदों के बीच में योजक चिह्न (-) लगाना चाहिए जैसरस्सी-बाल्ली। दाल-भात

 

6. 'सा', 'जैसा' सारूप्य वाचकों के पहले योजक चिह्न (-) लगाना चाहिए। जैसेउसके-जैसा, राधा-जैसी, तुम-सा, मुझ-सा

 

7. पंचमाक्षर के बाद जब उसी वर्ग का कोई वर्ण आवे, तब वहाँ अनुस्वार () का ही प्रयोग किया जाना चाहिए जैसेचंदन, क्रंदन, वंदना, इत्यादि

 

8. में, नहीं, हैं, मैं आदि के अतिरिक्त बाकी आवश्यक जगहों पर चंद्रबिंदु () का प्रयोग करना चाहिए जैसे-चाँद, माँद, काँपना, इत्यादि।

 

9. जब समास और उसकी विभक्ति के बीच 'ही', 'तक' आदि अव्यय आयें, तब विभक्ति को अलग लिखा जाता है। जैसे-राम ही के लिए, कई दिनों तक के लिए।

 

10. अरबी, फारसी और उर्दू के शब्दों को उनके अपने प्रचलित रूप में लिखना चाहिए। इनके अक्षरों के नीचे बिंदी या नुक्ता (, ) लगाने की आवश्यकता नहीं है।

 

11. जिस क्रिया के भूतकालिक पुंल्लिग एकवचन के अन्त में 'या' आता है, उसके पुंल्लिग बहुवचन में 'ये' तथा स्त्रीलिंग एकवचन में 'यी' और स्त्रीलिंग बहुवचन में 'यीं' का प्रयोग करना चाहिए जैसेगया-गये, आया-आये, गयी-गयीं, इत्यादि

 

12.विधि क्रियाओं के अंत में 'ये' का प्रयोग करना चाहिए जैसे-दीजिये, आइये, जाइये, इत्यादि

 

13. अंगरेजी के जिन शब्दों में आधे '' ध्वनि का प्रयोग होता है, हिंदी में उनका शुद्ध रूप लिखने के लिए '' की मात्रा () के ऊपर अर्द्धचन्द्र () का प्रयोग किया जाता है। जैसेकॉलेज, नॉलेज, डॉक्टर, हॉस्पीटल, इत्यादि

 

14. अरबी, फारसी और उर्दू में संयुक्ताक्षर नहीं होते इन भाषाओं के शब्दों में संयुक्ताक्षर का प्रयोग नहीं होना चाहिए जैसेबिलकुल, उलटा, तसवीर, इत्यादि

 

15. किसी शब्द के अन्त में यदि '' हो, तो उसके बहुवचन में '' हो जाता है। जैसे-हुआ-हुए, आदि।


16. चाहिए' शब्द हर हालत में इसी रूप में प्रयुक्त होता है।

 

वर्तनी-संबंधी कुछ सामान्य भूलें

वर्तनी के संबंध में छात्रों से अक्सर कुछ भूलें हो जाती हैं इसे सतत अभ्यास, सतर्कता यथा सावधानी से दूर किया जा सकता है। हिन्दी के विद्वान लेखकों तथा रचनाकारों की रचनाओं का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने पर वर्तनी के मामले में ज्ञान का विकास संभव है।

 

हिन्दी में मात्राएँ-  व्यंजन वर्ण के साथ जब स्वर जुड़ता है तब '' के अतिरिक्त बाकी सभी स्वरों का रूप बदल जाता है।'' तो व्यंजन वर्ण के साथ मिलकर तदरूप-तदाकार। हो जाता है। जैसेक् + - , च् + -, आदि स्वरों के इसी बदले हुए रूप को मात्रा कहा जाता है इन मात्राओं के लिए अलग-अलग चित्र निर्धारित हैं।


नीचे दी। गयी तालिका से यह तथ्य और भी स्पष्ट होगा ।

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हस्व स्वरों (, , ) में एक मात्रा होती है, बाकी सभी दीर्घ स्वरों में दो मात्राएँ होती हैं। यहाँ एक बात और भी जान लेनी चाहिए अन्य व्यंजन वर्गों के साथ जिस रूप से '' '' या  ''''  का योग (कु, कू) होता है, '' के साथ ठीक वैसा ही नहीं होता '' के साथ इनके जुड़ने से उसका रूप इस प्रकार हो जाता है र् + = रु , र् ++ ऊ = रू ये ”र्” के साथ मिलाकर लिखे जाते हैं।